हेलमेट के भूत





हमर मइके रइपुर म नवा रहपुर बन गे हे, तेन ल तो तेहां जानत हस। टूरा के दाई ह अपन अउ अपन मइके के बढई सुनके खुस होगे। भला कोन माइलोगिन खुस नई होही। लडियावत कहिस- नवा रपुर बने ले कहां एको गे हंव मइके। मेहा कहेंव- ले ना ये बखत तोर पूजभजित मन के बिहाव के नेवता आही तक चल देबे। टूरा के दाई ह मगन होके कहिथे- अई ह, नवा रदपुर के रोड मन तो अब अब्बड चौंक-चाकर हावय कहिथें। जुन्ना रइपुर म मोटर गाडी के पीं-पों, मेला बरोबर खैमों-खैमों लागथे कहिथें। मेहा कहेंव- तैं तो सौंहत देखे बरोबर सबो ल बता डारे। फेर, आजकाल म एकठन भूत अमा गे हे। टूरा के दाई ह अचरित ले कहिस – भूत अमा गेहे? का भूत ये ऐहा? मेहा कहेंव- हेलमेट के भूत।
अतेक बड बाढे ले मेहा आज ले हमर मइके म काहीं भूत-परेत के नांव नई सुने हंव। दूसर डहर के भूत-परेत धरे मन ह बंजारी बाबा के मजार म आथें भूत भगाये बर। फेर ओ कइसन भूत आये ते। बंजारी बाबा के रहत ले हमर रहपुर म अमा गे हे। मेहा कहेंव- थोरिक दिन होये हे, रइपुर म फटफटी वाला मन ल धरत हे। नावां कानहून निकरे हे। सब फटफटी वाला मन ल मुड म हेलमेट खपले ला परथे। जउन नई खपलही तउन ल डांड पर जथे। दाई कहिस- अई.. कनौजी सहिक गोल मुड – म खपलाये रहिथे तउने ल हेमलेट कहिथे ओ..। ऐकर पहिरे ले का होथे। मेहा कहेंव- ऐकर पहिरे ले कोनो खराबी नइ होवय। बल्कि गिरे-परे ले मुड-कान ल नई लागय। टूरा के दाई कहिस – ऐहा बनेच बात आय। येहा भूत-परेत कइसे होइस? भूत-परेत मनखे ल सताथे। कभु-कभु जीव ल घलो ले लेथे।




मेहा कहेंव- ओ दिन एकझन संगवारी संग हमन रइपुर गे रेहेन। उहां जघा-जघा म हेलमेट के दुकान लगे राहय अड लेवइया मन ह माछी बरोबर झूमे रहय। अउ जउन फटफटी वाला मन हेलमेट नई पहिरे रहय तेन मन ल हेलमेट के भूत के दूत मन ह चलान करत रहंय। वोमन हमूमन ल रोक के कहिथे- हेलमेट हे? हेलमेट तो ए जघा नइये। हमन तो गंवई गांव के रहवइया आन। एकझन मरीज ल देखे बर मेकाहारा आय रेहेन। हमर मन के गोठ ले सुनके धमकावत कहिथे- तुम लोगों को नहीं मालूम है कि यहां बिना हेलमेट के मोटर साइकिल चलाना मना है। हमन कहेन- हमन तो नइ जानन साहब। हमन ल तो कोनो नइ बताय हे। पहिली तो नई लागत रिहिस साहब। पुलिसवाला कहिस- तुम लोगों को अंदर कर देंगे, क्या समझे? एक्सीडेंट हो जाएगा तो कोन जिम्मेदार होगा? चलो थाना। हमन थाना के नांव सुनके कांपे लगेन। एकझन छत्तीसगढी म किहिस- तुमन कोन गांव म रहिथो जी? वोकर बोली ल सुनके हमन ल थोकिन बल मिलिस। चल ये पुलिसवाला ह हमर छत्तीसगढिया भाई ए। हमन कहेन-महासमुंद रहिथन साहब। हमन ल छोड दव, गलती होगे। वो कहिस- थोर बहुत होही ते पान-परसाद बर दे दब अउ जावव भागव। हमर संगवारी ह पचास के नोट ल वोकर हाथ म धरा दीस। हमन तुरते भागेन।




तेलीबांधा के चंंउक म हेलमेट के भूत के दूत मन सादा-सादा पहिरे रहंय। हमन ल छेंक के पूछिस- लाइसेंस हे? हमन कहेन- हे। पुलिसवाला कहिस- हेलमेट कहां हे? हमन कहेन- नइये। तब कथे चलो अंदर तुम लोगों को चलान करते हैं। हमन कहेन- चलान बर तो नइये साहब, चाहा-पानी बर ले लौ। वो भूत के दूत कहिस- ठीक है साहब के लिए कुछ दे दो और जाओ भागो। येहू मन ल पचास के नोट दे के लकर-धकर भागेन। छेरीखेडी ल नाहकेन त हमर जीव ह हाय लागिस। भरपूर सांस लेवत मोर संगवारी ह कहिथे- वाह रे हेलमेट के भूत, तोर से ले-देये म बांचेन। इही बात ल सुरता करके मोला रहि-रहि के हांसी आथे। टूरा के दाई ह घलो सुन के खलखला के हांस डारिस। जब वोहा हांसत रिहिस त वोकर चेहरा म अपन मइके, याने राजधानी के बेटी होय के भाव झलकत रिहिस। अउ मोर उपर हेलमेट के भूत ह चघ के काहत रिहिस- मंय तुंहरो महासमुंद अउ जम्मो छत्तीसगढ म अमा जहूं। बस मोर ‘आका’ के फरमान भर मिल जाय।

बिट्ठलरम साहू ‘निश्छल’
महासमुंद



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